Friday, February 11, 2011

अजनबी....

ख्वाबों में मेरी रोज आता हैं वोह..
आँखों से नींदे उडा ले जाता हैं वोह...
चेहरा तो उसका अंजान हैं फिर भी....
क्यूँ इतना अपनासा लगता हैं वोह?

बहती हवा में भी उसकी आहट होती हैं...
इस दिल को उसकी चाहत होती हैं...
माना की वोह अजनबी हैं फिर भी...
क्यूँ इतना प्यारा सा लगता हैं वोह?

खिलती कलियों में खुशबू उसकी होती है...
इस दिल में पूजा भी उसकी होती हैं...
माना की वोह मुझसे दूर हैं फिर भी...
क्यूँ इतना करीब लगता हैं वोह?







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